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ढुकू प्रथा का दंश: 22 पंचायतों में 200 बच्चे माता-पिता के प्यार से वंचित

छत्तीसगढ़ में मासूमों के भविष्य पर खतरा, ढुकू प्रथा बनी कारण: छत्तीसगढ़ :   के अंबिकापुर जिले के सीतापुर ब्लॉक में आदिवासी समाज में प्रचलित ...


छत्तीसगढ़ में मासूमों के भविष्य पर खतरा, ढुकू प्रथा बनी कारण:

छत्तीसगढ़ :  के अंबिकापुर जिले के सीतापुर ब्लॉक में आदिवासी समाज में प्रचलित ढुकू प्रथा नाबालिग बच्चों की जिंदगी को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। हाल ही में एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) द्वारा 22 पंचायतों के 33 पारा-टोला में किए गए सर्वे में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इस अध्ययन में पता चला कि लगभग 200 बच्चे अपने पिता के संरक्षण और मां की ममता से वंचित हो चुके हैं।


क्या है ढुकू प्रथा?

ढुकू प्रथा आदिवासी समाज में प्रचलित एक अनौपचारिक विवाह प्रथा है, जिसमें पुरुष और महिला बिना किसी कानूनी या सामाजिक मान्यता के साथ रहने लगते हैं। इस रिश्ते में न तो विवाह का कोई आधिकारिक प्रमाण होता है और न ही कोई सामाजिक सुरक्षा। इस कारण जब भी रिश्ते में दरार आती है, तो पुरुष आसानी से महिला और बच्चों को छोड़कर चला जाता है।


बच्चों पर पड़ रहा गहरा असर:

सर्वे के अनुसार, इस कुप्रथा के कारण सैकड़ों बच्चे माता-पिता में से किसी एक या दोनों के स्नेह से वंचित हो गए हैं। बिना कानूनी विवाह के जन्मे इन बच्चों को समाज में स्वीकार्यता नहीं मिलती, जिससे उनका भविष्य असुरक्षित हो जाता है। न केवल वे मानसिक और भावनात्मक तनाव झेलते हैं, बल्कि उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।


समाज में बदलाव की जरूरत:

विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रथा को समाप्त करने के लिए जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है। सरकार और सामाजिक संगठनों को मिलकर इस समस्या का हल निकालना होगा, ताकि हर बच्चे को सुरक्षित और प्रेमपूर्ण बचपन मिल सके।


निष्कर्ष:

ढुकू प्रथा सिर्फ एक सामाजिक समस्या नहीं, बल्कि नाबालिगों के भविष्य पर मंडराता गंभीर संकट है। इसे रोकने के लिए सरकार, समाज और परिवारों को मिलकर ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि अगली पीढ़ी इस कुप्रथा के दंश से बच सके।


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